चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था, जिसका कार्य है भारत के जनतंत्र की रक्षा करना एवं यह सुनिश्चित करना की चुनाव निष्पक्ष हों, मगर जब चुनाव की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिंह लगे तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिंह लगना तो नुमायाँ है.
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अर्थात ईवीएम की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह तो समय समय पर लगते ही रहे है मगर चुनाव आयोग इसे हमेशा नकारता रहा है. मुंबई में एक उम्मीदवार को जीरो वोट मिलते हैं, जबकि उम्मीदवार स्वयं मतदाता और उसने स्वयं को वोट दिया. कई पोलिंग बूथ पर कुल मतदाता से अधिक मतदान के भी आरोप लगे हैं. परन्तु अब मध्य प्रदेश के भिंड में जो मामला सामने आया उसने तो सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए.
भिंड में होने वाले उपचुनाव के पूर्व ईवीएम के प्रदर्शन में एक ईवीएम में कुछ भी बटन दबाओ वोट सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह कमल के फूल पर. एक पत्रकार ने जब इस पर आपत्ति ली, तो मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा उसे मुंह बंद करो या जेल जाओ की धमकी दी गयी.
मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा पत्रकार को जेल में डालने की धमकी
ये मामला दबा भी दिया जाता परन्तु जनतंत्र के इस दुर्भाग्यपूर्ण पूर्ण वाकये के विडियो सामने आने से देश भर में हंगामा मच गया. अतः चुनाव आयोग ने इसकी जांच के आदेश दे दिए. परन्तु अभी भी चुनाव आयोग ने ईवीएम के विकल्प के रूप में बलेट पेपर के इस्तेमाल पर विचार आरम्भ नहीं किया.
चुनाव आयोग द्वारा जांच के आदेश
प्रश्न उठाना तो स्वाभाविक है, जब लगातार चुनाव दर चुनाव ईवीएम की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे तब चुनाव आयोग ने इसे क्यों नकारा? क्या चुनाव आयोग वाकई निष्पक्ष है एवं क्या इसे संवैधानिक संस्थान का दर्जा बरकारार रखने का औचित्य है?