महात्मा गाँधी को किसने मारा?

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मोहनदास करमचंद गाँधी मात्र के नाम नहीं बल्कि एकता, अहिंसा एवं स्वाभिमान की विचारधारा का प्रतिक है, इसीलिए इन्हें गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने महात्मा एवं सुभाषचन्द्र बोस ने राष्ट्रपिता की उपाधि से सम्मानित किया. ये एक विडंबना ही है की अहिंसा के पुजारी एवं प्रचारक महात्मा गाँधी की नृशंस हत्या गाँधी-बुद्ध के देश में भारत के ही नागरिकों ने कर दी. आज से ६८ वर्ष पूर्व चंद लोगों ने महात्मा गाँधी की गोली मार कर हत्या कर दी. कौन थे ये लोग? इनका मकसद क्या था? इनकी विचारधारा क्या थी? भारत की स्वतंत्रता में इनका क्या योगदान था? इनके पीछे कौन लोग थे? इतिहास के पन्नों से इनका उत्तर खोजने का एक प्रयत्न है यह आलेख…
भारत की स्वतंत्रता के मात्र ५.५ माह पश्चात् महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गयी, हत्या से चंद दिन पूर्व २० जनवरी १९४८ को भी गाँधी की हत्या का प्रयास किया गया, मगर वह बम विस्फोट गाँधी के प्राण लेने में असमर्थ रहा.
कुछ तथ्य इस घटना के और इस घटना से जुड़े लोगों के विषय में:
सरदार वल्लभभाई पटेल ने राष्ट्रपिता की हत्या के पश्चात् राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगाते समय इसका एक कारण ये बताया था की जब सम्पूर्ण विश्व गाँधी की हत्या पर शोकाकुल था तब मात्र आरएसएस ही इसपर प्रसन्न हो कर मिठाइयाँ बाँट रहा था.
यही नहीं, सरदार के स्वयं के शब्दों में:
The information received by the Government of India shows that the activities carried on in various forms and ways by the people associated with the RSS tend to be anti national and often subversive and violent and that persistent attempts are being made by the RSS to revive an atmosphere in the country which was productive of such disastrous consequences in the past.
महात्मा गाँधी की हत्या के कुछ समय पश्चात् आरएसएस के लोगों द्वारा भारतीय राष्ट्रध्वज को जगह जगह पैरों तले कुचला इस पर पंडित नेहरु ने फरवरी २४, १९४८ के भाषण में कहा: कुछ स्थानों पर आरएसएस के लोगों द्वारा राष्ट्रध्वज का अपमान किया गया, उन्हें अच्छी तरह मालूम है वो स्वयं को गद्दार साबित कर रहे थे.
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इंडियन एक्सप्रेस के फरवरी ८, १९४८ के अनुसार, देशभर में राष्ट्रिय नेताओं की हत्या की साजिश आरएसएस द्वारा रची गयी थी, बढ़ी मात्र में असला-बारूद पकडे जाने एवं एवं इनके कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी से ये साजिश कार्यान्वित नहीं हो सकी.
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फरवरी ६, १९४८ के इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, दामोदर सावरकर के नित्रित्व वाली हिन्दू महासभा ने महात्मा गाँधी की हत्या की साजिश रची थे, एवं सभी हथियार, सुविधाएँ मुहैया करायी थी.
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आज जो आरएसएस भारतीय सरकार एवं राजनीती के हर अंग में सम्मिलित है उसपर से प्रतिबंध इसी शर्त पर हटाया गया था की वो किसी राजनितिक गतिविधियों में भाग नहीं लेगी. परन्तु आरएसएस ने एक मुखौटा जिसे की आज हम और आप भारतीय जनता पार्टी के नाम से जानते है के माध्यम से अपनी राजनितिक महत्वकांक्षाओं को पूर्ति की, वस्तुतः आज की भाजपा कोई और नहीं वो संगठन है जिसे पंडित नेहरु एवं सरदार पटेल ने महात्मा गाँधी की हत्या के लिए जिम्मेदार माना और प्रतिबंधित किया
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फरवरी ७ १९४८ के इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के अनुसार गाँधी की हत्यारे नाथूराम गोडसे को आरएसएस के लोगों ने ही बंदूक दी थी.
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सरदार पटेल के अनुसार हिन्दू महासभा द्वारा गाँधी ही नहीं नेहरु की हत्या की भी साजिश की गयी थी जो की असफल हो गई.
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सम्पूर्ण विश्व में महत्मा गाँधी की हत्या पर शोक मनाया गया था, सम्पूर्ण विश्व आरएसएस एवं हिन्दू महासभा के इस कृत्य पर हतप्रभ एवं शोकाकुल था.
१९६५ में गठित कमीशन में न्यायाधीश जीवनदास कपूर द्वारा इस हत्याकांड की पुनः जाँच की गयी. सभी तथ्यों की जांच एवं गवाहों के कथनों के पश्चात् इस कमिशन ने पाया की महात्मा गाँधी की हत्या की साजिश सावरकर एवं आरएसएस ने की थी. इस कमीशन अनेकों ऐसे तथ्य मिले जो की ट्रायल कोर्ट को उपलब्ध नहीं थे. सावरकर के करीबी ए पी कसार एवं जी वी दामले ने इस कमीशन के समक्ष बयान दिए, जो ट्रायल कोर्ट के समक्ष नहीं दिए गए थे. चूँकि इस समय तक सावरकर की मृत्यु हो चुकी थी और इन दोनों को किसी प्रकार का भय नहीं था इसीलिए ये कमीशन के समक्ष बयान देने की हिम्मत जुटा पाए. वस्तुतः गोडसे एवं आप्टे के केवल हाथ थे इस हत्याकांड में, दिमाग तो सावरकर का था. गोपाल गोडसे ने भी कहा है की नाथूराम गोडसे ने आरएसएस कभी नहीं छोड़ी मगर सावरकर एवं आरएसएस को बचाने के लिए झूठ बोला था.
Nathuram, Dattatreya & I, all were in RSS. We grew up in RSS & not our homes. It was family. Nathuram said in his statement that he left RSS coz Golwalkar & RSS were in trouble after the murder.
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की आजाद भारत में पहला आतंकवादी हमला ३० जनवरी १९४८ में गाँधी जी हत्या कर हुआ था और इसके प्रायोजक संगठन थे आरएसएस एवं हिन्दू महासभा.
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एक ओर भगतसिंह थे जिन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी मांगने के बजाय देश के लिए शहीद होना उचित समझा और दूसरी हो वो कायर जिसने न केवल महात्मा गाँधी की हत्या को अंजाम दिया बल्कि अंग्रेजों से अपनी जान बचाने के लिए क्षमा याचना की, और ये शर्मनाक ही है की भाजपा ने इसी कायर की पोर्टेट संसद के सेंट्रल हाल में गाँधी जी की प्रतिमा के समक्ष लगा दी.
महात्मा गाँधी को मार कर जब ये गाँधी की विचारधारा का अंत ना कर पाए तो ये गाँधी के हत्यारों का महिमामंडन करने लगे, इसी क्रम में सावरकर को “वीर” बताने का प्रयत्न हुआ और अब गोडसे के मंदिर बनाने के प्रयत्न किया जा रहे, गोडसे के महिमामंडन करती पुस्तकें लिखी जा रही है, इनका भाजपा नेता विमोचन कर रहे है. मगर यह राष्ट्र गाँधी का है, यहाँ गाँधी की विचारधारा ही सदैव विद्यमान रहेगी. गाँधी की विचारधारा पर उन तत्वों द्वारा किया जा रहा है जिनका की भारत की स्वतंत्रता एवं निर्माण में कोई योगदान नहीं रहा ही, ये वो लोग है जिन्होंने हमेशा भारत के विरुद्ध ही कार्य किया है.
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