जय जवान जय किसान यही नारा दिया था स्व. लालबहादुर शास्त्री ने. और यही भारत जैसे कृषि प्रधान देशकी उन्नति का मंत्र है. पर वर्तमान में लगातार घट रही घटनाओं ने देश के मूलभूत ढांचे को ही तोड़ मरोड़ दिया है. हर गाँव से किसानों की आत्महत्या की खबरें आ रही है. अब किसानों ने अपने अधिकारों के लिए लड़ने की ठानी है. जीडीपी में गिरावट के बावजूद कृषि क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन बहुत ही बेहतर रहा है, मगर फिर भी यदि किसान आंदोलन के लिए उतरें है तो आखिर इसका कारण क्या है?
महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश में किसान अपने हक़ के लिए सड़क पर उतर आये है, दोनों ही प्रदेशों में किसान आंदोलन किसी एक संगठन द्वारा नहीं बल्कि अनेक संगठनों के साझा प्रयासों के बदौलत चल रहा है. जहाँ मध्यप्रदेश में किसान कृषि उपज के न्यायसंगत मूल्य की मांग कर रहे है वहीँ महाराष्ट्र में किसान कर्ज माफ़ी की मांग कर रहे है. दोनों की प्रदेशों में किसानों ने शहरों को सब्जियों एवं दूध की आपूर्ति को ठप कर दिया है. सड़कों पर सैकड़ों लीटर दूध बहा दिया और सब्जियां बिखेर दी.
दूध बहा देने और सब्जियां बिखेर देने पर बहुत-से लोगों को आपत्ति है। इनकी आपूर्ति रोकने के भयावह परिणाम गिनाए जा रहे हैं। मगर किसान वर्ग बेवजह छोटी मोटी समस्याओं को ले कर सड़क पर कभी नहीं आते, पर सरकार की उदासीनता, घोषित न्यूनतम मूल्य से भी कम मूल्य पर फसल बेचने से होने वाले कर्जे एवं इसके परिणाम स्वरुप हर वर्ष हजारों किसानों की आत्महत्या ने उन्हें आंदोलन पर उतंरने को मजबूर कर दिया.
तमिलनाडु के किसानों ने मूषक खा कर मूत्र पी कर आंदोलन किया पर फिर भी सो रही सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. सरकार की ऐसी संवेदन हीनता एवं उदासीनता के बाद यदि किसान उग्र हो जाएँ तो क्या आश्चर्य है?
पढ़िए: एक खुला पत्र प्रधानमंत्री के नाम – किसानों को नजरंदाज न करें
उत्तर प्रदेश चुनाव में स्वयं प्रधानमंत्री ने किसानों के कर्ज माफ़ी की घोषणा की थी, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्यों के किसान भी यही मांग कर रहे है फिर भी प्रधानमंत्री अपने ही वादों को पूरा नहीं कर रहे.
२०१४ के चुनावों में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था की अगर भाजपा सत्ता में आती है तो किसानों को उनकी उपज का डेढ़ गुना मूल्य दिलाएगी, एवं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करेगी. मगर कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ, अन्य वादों की तरह ही ये वादा भी जुमला ही साबित हुआ. जहाँ हमारे प्रधानमंत्री किसानों की आय दुगुनी हो जाने का सपना दिखाते है हकीकत में किसानों को फसल का न्यूनतम मूल्य भी नहीं मिल पा रहा, जबकि वे ३ वर्षों से स्पष्ट बहुमत से सत्ता में हैं.
किसानों का आंदोलन दिन प्रतिदिन भीषण होता जा रहा है, हिंसा फ़ैल रही है, मगर सरकार बजाय समस्या का समाधान करने के येन केन प्रकारेण आंदोलन में फूट डाल कर इसे तोड़ना चाह रही है, किसान आंदोलन के लिए अन्य विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहरा कर फिर आश्वासन पर आश्वासन दे रही है, कुछ स्थानों पर बलपूर्वक भी आंदोलन को ख़त्म करने का प्रयास किया गया है.
प्रधानमंत्री को यह समझ लेना चाहिए की हो सकता है ये दो राज्यों का आंदोलन समाप्त हो जाए, हो सकता है किसान अभी चुप बैठ जाए, मगर ये भी हो सकता है की मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र से उठी किसानों के अधिकार की मांग देश भर में फ़ैल जाए. किसान देश का अन्नदाता है, और अन्नदाता का अपमान और तिरस्कार देश की सत्ता को हिलाने की शक्ति रखता है. पता नहीं प्रधानमंत्री एवं उनकी सरकार की किसानों के प्रति उदासीनता देश को किस दिशा में ले जायेगी.
Farmers of INDIA are the backbone of country’s economy, but this FEKU’s Govt. is busy in benefiting big houses in response of financing his elections.
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