जनता का चेहरा या अपरिपक्व राजनेता?

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व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाते उठाते एक सामान्य युवक कब लाखों दिलों पर राज करने लगा पता ही नहीं चला. भाजपा और कांग्रेस जैसे स्थापित राजनीतिक दलों को हरा कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुआ. स्वच्छ छवि, कुछ अलग कर गुजरने की जनता से अपील, नतीजा? कांग्रेस शून्य, एवं भाजपा ३ सीटो पर सिमट गयी दिल्ली में, १५ वर्षों से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित स्वयं अपना चुनाव हार गयी, दिल्ली के बड़े बड़े धुरंधर नेता जमीन चाटते नजर आये. जी हाँ आज हम चर्चा कर रहे है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को जो पारंपरिक भ्रष्ट तंत्र का विकल्प बन कर उभरे.

कभी उसके मफलर तो कभी खांसी का मजाक बनाया. ऐसा नहीं की अरविंद ने गलतियां नहीं की, मुख्यमंत्री रहते धरना, फिर त्यागपत्र, ये सभी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही परिणाम था, मगर इसी राजनीतिक अपरिपक्वता को जनता ने पसंद किया इसीलिए अरविंद दिल्ली की सत्ता पर फिर काबिज हुए और इस बार प्रचंड बहुमत से. हालाँकि इस सफर में अनेक साथी छूट गए, उनके गुरु अन्ना हजारे हो, मित्र प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, किरण बेदी परन्तु जनता की लड़ाई के यज्ञ में कुछ आहुतियाँ तो पड़ती ही हैं.

अब राजनीतिक दलों को एक आम आदमी से हार कहाँ बर्दाश्त हो सकती थी? आरम्भ हो गयी चरित्र हनन की कोशिशें, कभी सीबीआई ने उनके कार्यालय पर छापा मारा गया तो कभी लेफ्टिनेंट गवर्नर के जरिये उन्हें परेशान किया गया. परन्तु उससे न तो उनका हौसला टूटा और न ही उनकी लोकप्रियता कम हुई, हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें पंजाब में सत्ताधारी अकाली-भाजपा से अधिक विधानसभा सीट मिली और प्रमुख विपक्ष का दर्जा मिला हालाँकि वो इस चुनाव में सत्तानशीन कांग्रेस से काफी पीछे ही रहे, फिर भी पहली बार राज्य में चुनाव लड़ कर प्रमुख विपक्ष की भूमिका में विधानसभा पहुंचना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है.

हाल ही में उनके विरुद्ध लगे मान हानि के दावे में बचाव पक्ष के वकील की फीस पर बवाल मचाया गया, मगर ये नहीं बताया गया की माननीय प्रधानमंत्री महोदय ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते लोकायुक्त नियुक्ति रोकने के लिए करदाताओं के १४५ करोड़ खर्च किये थे, यही नहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डम्पर घोटाले से खुद को बचाने के लिए सरकारी खजाने में से करोड़ों खर्च कर डाले.

उनके मंत्री की डिग्री भी के बड़े विवाद का कारण बनी मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं पूर्व मानव संसाधन मंत्री वर्तमान कपड़ा मंत्री स्मृति इरानी की डिग्री पर कोई जवाब नहीं देगा.

अरविंद एवं उनके उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, मगर ये बताना भूल गए की स्वयं प्रधानमंत्री (तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात) पर लाखों करोड़ के घोटाले के आरोप लगे परन्तु जांच की बजाय उन्होंने करदाताओं के करोड़ों खर्च कर लोकायुक्त की नियुक्ति ही रोक दी, कैग की रिपोर्ट को विधानसभा पटल पर ही नहीं रखने दिया.

यदि अरविन्द केजरीवाल को छींक भी आ जाए तो सोशल मीडिया पर भिन्न भिन्न प्रकार के टैग ट्रेंड करने लगते है, और हर टैग में केवल अरविंद का मजाक. मगर ये राजनितिक दल ये भूल जाते है की ये जितना अरविंद पर हमला करते हैं, उनकी लोकप्रियता और जनता में स्वीकारता और बढ़ जाती है.

जब ये रुढ़िवादी दल अरविन्द पर आरोप लगाने में व्यस्त थे, अरविन्द दिल्ली के विकास में लगे थे, शासन का सिमित अधिकार होते हुए भी अनेक क्षेत्रों में अरविन्द सरकार का योगदान सराहनीय है.

राजनीतिक दलों की सबसे बड़ी गलती ये है की बजाय अरविंद से स्वच्छ व् निर्मल राजनीति सीख कर भारत के हित में कार्य करने के, वे एक ईमानदार प्रयास को विफल करने में लगे हैं. यदि राजनीति दल स्वयं में सकारात्मक बदलाव लाये तो अरविंद जैसे युवाओं को राजनीतिक दलदल में उतरना ही नहीं पड़े. अरविंद मात्र दिल्ली के मुख्य मंत्री नहीं, बल्कि जनता के प्रतिनिधि हैं, दशकों से स्थापित राजनितिक दल जितना उन पर वार करेंगे, वो उतने ही मजबूत हो कर उभरेंगे. वो इस भ्रष्ट राजनीति में एक विकल्प बन कर उभरें हैं, अन्य राजनीतिक दल जितना जल्दी में समझ ले उतना अच्छा है.

One comment

  1. Mahender · · Reply

    Just True, however, the immaturity of Arvind Kejriwal is costing Delhi a lot.

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