दो राजनितिक दल जो को भारतीय राजनितिक के धरातल पर आज विराजमान हैं, एक है ऐतिहासिक दल भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस और दूसरा भारतीय जनता पार्टी जो की ४० से कम वर्ष पुरानी है, जहाँ कांग्रेस सिमटती जा रही है वहीँ भाजपा बढती जा रही है.
देश के काफी लोगों को ६० साल से अधिक भारत पर शासन करने वाली कांग्रेस का अंत करीब दिख रहा हैं, वहीँ शायद काफी लोग अब अगले ६० वर्ष भाजपा का शासन देखने की कामना कर रहे हैं.
एक महत्वपूर्ण अंतर जो कांग्रेस और भाजपा के बीच है, की भाजपा हमेशा रणनीति बनाती है फिर उसे क्रियान्वित करती है, वहीँ कांग्रेस के पास अपने इतिहास के अलावा और कोई रणनीति नहीं है. कांग्रेस के मुख्य हथियार हैं प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की आलोचना, व्यक्तिगत प्रहार, जो की हर बार विफल हुआ है, दूसरा मुख्य हथियार है गांधी-नेहरु परिवार की भक्ति, चाहे सोशल मीडिया हो या मेनस्ट्रीम पार्टी, सभी जगह केवल रागा का सागा, जीते तो रागा की जयजयकार, हारे तो रागा का बचाव.
महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा-राजीव के नाम पर चलने वाली कांग्रेस अब प्रशांत किशोर जैसे भाड़े के रणनीतिकारों की बदौलत चलने लग गयी.
ऐसा नहीं है की भाजपा में सबकुछ अच्छा है, या ठीक चल रहा हो, बिहार और दिल्ली में हारे, पंजाब गया, मणिपुर और गोवा में भी जनमत से नहीं जोड़ तोड़ से सरकार बनाई, नोटबंदी ने काफी बवाल किया, महंगाई आसमान छू रही है, अर्थव्यवस्था धरातल के भी नीचे जा रही है, भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे, यहाँ तक की घोटाले आरोप स्वयं प्रधानमंत्री मोदी पर भी लगे, अनेक बड़े शिक्षण संस्थान अराजकता के शिकार हुए, परन्तु जिस प्रकार कांग्रेस अपनी उपलब्धियों को जनजन तक नहीं पहुंचा पायी उसी प्रकार मोदी सरकार की विफलता भी मतदाताओं तक पहुंचाने असफल रही.
ऐसा भी नहीं है की कांग्रेस की बुरी हालत कभी नहीं हुए, १९७७ में आपातकाल के पश्चात इंदिरा गाँधी सत्ता से बाहर हुई, जेल गयी, चुनाव भी हारे, मगर १९८० में प्रचंड बहुमत से वापसी की, १९९६ से २००४ तक भी कांग्रेस के हालत खराब थे, मगर फिर कांग्रेस ने २००४ में वापसी की, और ऐसा हुआ इंदिरा गांधी के कौशल एवं नेत्रित्व की वजह से, ऐसा हुआ, सोनिया गाँधी की रणनीति की वजह से, मगर आज न तो कांग्रेस में इंदिरा गांधी जैसा कोई नेता है और न ही सोनिया गांधी जैसा कौशल. सोनिया गाँधी स्वयं की बिमारी की वजह से राजनीती से लगभग संन्यास लेती ही दिखती है, और उनके सुपुत्र राहुल गांधी कांग्रेस जैसे विशाल संगठन का बोझ उठाने में नाकाबिल.
जहाँ भाजपा किसी भी चुनाव से २ साल पहले ही अपनी रणनीति बना कर उसे अमल में लाने के प्रयत्न में लग जाती है वहीँ कांग्रेस चुनाव की तारीख घोषित के पश्चात भी चेहरा ही खोजते रहती है, समाजवादी पार्टी और जनता दल यूनाइटेड जैसे दलों की शरण में थोड़ी बहुत सीटों की दुआ करती है.
कांग्रेस में चेहरों की कमी नहीं है, मगर कांग्रेस में उन्हें आगे नहीं आने दिया जाता, जगन रेड्डी को खो कर कांग्रेस ने आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना खोया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, शशि थरूर जैसे नेता दूसरी पंक्ति के नेता बने हैं वहीँ गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, अहमद पटेल, अम्बिका सोनी जैसे नेता कांग्रेस के शीर्ष पर. भाजपा से सबक लेते हुए कांग्रेस ने पार्टी पर बोझ बने इन नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में नहीं भेजा.
कर्णाटक के अतिरिक्त, देश के किसी भी बड़े राज्य में कांग्रेस सत्ता में नहीं है, ये दर्शाता है की कांग्रेस जनता में अलोकप्रिय हो चुकी है, सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद गोवा और मणिपुर में सत्ता भाजपा को सौंप देना यही दर्शाता है की कांग्रेस में रणनीतिकारों का अकाल पड़ चूका है.
क्या कांग्रेस की मौजूदा हालातों से वापसी हो सकती है? अवश्य हो सकती है, यदि कांग्रेस मौजूदा हालात के कारणों को समझे स्वीकारे और उसे बदलने का प्रयत्न करे. परिवर्तन संसार का नियम है, और कांग्रेस में परिवर्तन आवश्यक है.
राजीव जी के हत्या के बाद सत्ता ओर पार्टी दोनों गाँधी परिवार के साथ नहीं था फीर क्या हूवा दुनिया जानती है l
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सही, यदि गांधी परिवार के सूत्र में कांग्रेस नहीं रही तो एक एक मोती बिखर जायेंगे
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Good introspection. One more thing BJP is getting benefits of division of opposition votes. And many parties like NCP AIADMK TMC BJD are helping Bjp to cut congress votes.there are ticket seeker in congress .they want to win election on gandhi name and than indulged into money making.
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Very true.
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