My hunt for a life-saving injection

कुछ समय पूर्व किसी ने मुझसे यही कहा था हमारे देश के विषय में  Today’s India is a hopeless nation with helpless Citizen. उस समय मैंने उससे करीब एक घंटे बहस कर अपनी बात रखी और उसे इस बात से सहमत कराया की उसकी ये सोच गलत है. मगर पिछले कुछ दिनों में मैं जिस दौर से गुजरा हूँ, मैं अब काफी हद तक इस बात से सहमत हो गया हूँ.

मेरे एक प्रियजन को कोरोना से ठीक होने के बाद Mucormycosis अर्थात ब्लैक फंगस हो गया. यह अब तक अत्यंत ही असामान्य बिमारी हुआ करती थी, परन्तु कोरोना महामारी में ये बिमारी ने अपना विकराल रूप दिखाया. ब्लैक फंगस बिमारी से मृत्युदर 50 प्रतिशत के करीब है, और यदि ये फंगस आँखों पर असर कर जाए तो सर्जरी कर आँखों को निकालना पड़ता है. इस बिमारी के इलाज के लिए मरीज को Liposomal Amphotericin-B नामक इंजेक्शन की आवश्यकता पड़ती है. सामान्य मरीज को 6-8 इंजेक्शन प्रतिदिन 10 दिन तक लगाये जाते है.

भारत में इस इंजेक्शन की अत्यधिक कमी है, और इसकी सप्लाई पूरी तरह से प्रशासन और शासन के अधीन है. जब मेरे प्रियजन को इस इंजेक्शन की आवश्यकता पड़ी तो हमने हर तरह से इसकी व्यवस्था में जी जान लगा दी, और उसी मिशन इंजेक्शन हंट के अनुभव को आज मैं इस ब्लॉग के माध्यम  से आपके साथ बाँट रहा हूँ. मैं आपको ये बताना चाहता हूँ की जिस प्रतिनिधियों को आप चुन कर संसद और विधानसभा भेजते है, जो अधिकारी आपके टैक्स से तनखा पाते है, उन्हें आपकी कितनी चिंता है.  

सबसे पहले, साल के आरम्भ में भारत के वाक्सिनेशन प्रोग्राम को ले कर बड़े बड़े दावे किये गए, भारत साकार ने भारत को विश्व का वैक्सीन गुरु तक घोषित कर दिया, मैं इन बातों में नहीं जाउंगा की सरकार ने वैक्सीन आर्डर करने में कितनी देर की, या फिर देशवासियों के लिए जितनी वैक्सीन रखी उससे अधिक निर्यात कर दी. मैं बात करूँगा, वर्तमान में भारत में किस गति से वैक्सीन लगाईं जा रही है. 28 अप्रैल 2021 तक भारत के मात्र 1.7% लोगो को कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज लगे थे, 6 मई, 2021 तक 2.1% लोगो को दोनों डोज गली और 30 मई, 2021 तक 3.1% को. अर्थात एक महीने में मात्र 1.4% लोगो को सरकार वैक्सीन के दोनों डोज लगा पाई है. जहाँ विश्व में 25% लोगो को कम से कम एक वैक्सीन की एक डोज दी जा चुकी है, वहीँ भारत में मात्र 14 लोगो को ही कम से कम वैक्सीन की एक डोज लगी है.

ये आंकड़े ही बताते है की सरकार इस महामारी को ले कर कितनी गंभीर है और इसे रोकने में कितनी कारगर है

अब बात करते है भारत में जीवन रक्षक दवाइयों की उपलब्धता के विषय में, और उससे पहले भारत में फैली एक बिमारी की और उसके कारणों की. भारत में कोरोना पीड़ितों के इलाज के लिए स्टेरॉयड एवं रेमडेसिविर नामक इंजेक्शन का भरपूर प्रयोग किया गया, मरीजों ने रेमडेसिविर इंजेक्शन तो 4 गुना से 10 गुना कीमत में खरीद खरीद कर लगवाए, आये दिन इस इंजेक्शन की कमी और नेताओं उनके समर्थकों यहाँ तक की मध्य प्रदेश के एक मंत्री के ड्राईवर द्वारा इस इंजेक्शन की कालाबाजारी के किस्से भी अख़बारों में छपे, फिर सरकार ने इस इंजेक्शन को कोरोना के इलाज से ही हटा दिया, मगर स्टेरॉयड एवं रेमडेसिविर के इस्तेमाल ने मरीजों को एक और मुसीबत में डाल दिया. इनकेसाइड इफ़ेक्ट से मरीजों को Mucormycosis अर्थात ब्लैक फंगस नामक बिमारी हो गयी. ये बिमारी कितनी घातक है ये मैं आपको इस ब्लॉग के आरम्भ में ही बता चुका हूँ. दुर्भाग्यवश मेरा के बहुत ही अजीज इंदौर इस बीमारी के जाल में फंस गया. उसे भी इस Liposomal Amphotericin-B की आवश्यकता पड़ी, जो की पूरे इंदौर में कही भी उपलब्ध नहीं था. और यही से आरम्भ हुआ मेरा इंजेक्शन हंट.


सरकार ने इस इंजेक्शन की सप्लाई पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली. कोई भी विक्रेता या डीलर इसे डायरेक्ट पेशेंट को नहीं बेच सकता था. मैंने इस इंजेक्शन की तलाश में मध्य प्रदेश और केंद्र में अनेक दरवाजे खटखटाए, और मुझे किसी का दरवाजा इसीलिए खटखटाना पडा क्योंकि सरकार ये जीवन रक्षक इंजेक्शन उपलब्ध कराने में पूरी तरह विफल थी. अस्पतालों को डायरेक्ट सप्लाई करते हुए सरकार 3-4 मरीजों को एक इंजेक्शन उपलब्ध करा पा रही थी, जहाँ एक मरीज को दिन में 6-8 इंजेक्शन चाहिए होते थे, ये उदहारण देखिये

इंदौर से ले कर दिल्ली तक मैंने हर दरवाजा खटखटाया, भाजपा और कांग्रेस के विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्य मंत्री, केन्द्रीय मंत्री, प्रधानमंत्री सोशल मीडिया पर जनता की मदद करने के लिए विख्यात नेता अभिनेता, किसी को नहीं छोड़ा, इस ब्लॉग में मैं आपको कुछ उन चुनिन्दा लोगो से मेरे अनुभव साझा करूंगा जिनपर आप हम अत्यधिक विशवास करते है.

चलिए शुरुआत करते है देश के सबसे ताकतवर, और सबसे अधिक जिम्मेदार व्यक्ति की, वो कोई और नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है. माननीय प्रधानमंत्री जी को मैंने सबसे पहले एक ईमेल लिखा, जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैंने पीएमओ की वेबसाइट  पर Grievance रजिस्टर किया, जिसे की पीएमओ में अम्बुज शर्मा नामक अधिकारी को नियुक्त किया गया, मैंने इस अधिकारी को दो दिन तक ईमेल लिखे परन्तु उनका कोई जवाब नहीं आया, इस बीमारी में हर घंटा मरीज के लिए भारी होता है, और ये अधिकारी आज 7 दिन तक कोई ईमेल का जवाब भी नहीं दे पाए.

अगली बात करते है लोगो की मदद करने के लिए चर्चित केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी की, 25 मई को मैंने गडकरी जी को ईमेल लिखा, और कुछ घंटों में उनके ऑफिस से मेरा ईमेल इंदौर कलेक्टर को फॉरवर्ड कर दिया गया, उसके पश्चात ना तो इंदौर कलेक्टर ना ही गडकरी जी के ऑफिस ने मुझे कोई जवाब दिया ना ही मदद की.

मेरा पहला ईमेल, गडकरी जी को

गडकरी जी के ऑफिस से इंदौर कलेक्टर तो  ईमेल

मेरे दो फॉलो अप ईमेल इंदौर कलेक्टर को, और दोनों ही ईमेल पर गडकरी जी भी कॉपी है, स्पष्ट है की गडकरी जी के ऑफिस से केवल एक फॉर्मेलिटी पूरी की गयी थी, ना की सहायता का प्रयत्न.

इन दोनों ही जगह से  निराश हो कर, मैंने संपर्क की एक ऐसे नेता को जो खुद को “जनसेवक” बताते है, जो कहते है जनता के दर्द की वजह से उन्होंने अपनी मातृसंस्था भी छोड़ दी, जो जनता के लिए सड़क पर निकलने की बात करते है, जी हाँ आप सही समझे है, ज्योतिरादित्य सिंधिया की. पहले तो मैंने ये समझा दूं की मैंने ज्योतिरादित्य सिंधिया से संपर्क  क्यों किया? इंदौर के कोविद प्रभारी मंत्री है तुलसीराम सिलावट, जो की सिंधिया के ख़ास शागिर्द है, मैंने 3-4 बार उनसे अपने मित्रों के माध्यम से डायरेक्ट संपर्क किया मगर कोई परिणाम नहीं निकला, कोई सहायता नहीं मिली इसीलिए मैंने सिंधिया से संपर्क किया. मगर जनसेवा का ढिंढोरा पीटने वाले सिंधिया ने एक जीवन को इतना महत्वपूर्ण नहीं माना की वो जवाब भी दे सके. वैसे कुछ दिन पूर्व सिंधिया की हवाबाजी से ग्वालियर में एक युवक की जान भी जा चुकी है.

संपर्क तो मैंने शिवराज सिंह चौहान से भी किया, उनका ईमेल तो मिला नहीं तो मैंने उनके पोर्टल के माध्यम से उन्हें मेसेज किया, उसका तो स्क्रीनशॉट है नहीं, मगर मैंने उनको कई ट्वीट किये, मगर उन्होंने भी जवाब देना ही उचित नहीं समझा, एक ट्वीट तो ये रहा जिसमे मैंने शिवराज जी और नरेंद्र मोदी जी दोनों से मदद की गुहार लगाईं. 

SOSIYC, सोनू सूद, श्रीनिवास बी वी, ये तीन नाम बहुत प्रसिद्द है लोगो की मदद करने के लिए, मगर मेरे लिए तो ये भी जीवन रक्षक नहीं बन पाए, इन्हें केवल मैंने ही नहीं, अनेक लोगो ने ट्वीट कर मदद करने की गुहार लगाई, मगर जवाब ही नहीं आया. ऊपर के ट्वीट जैसे अनेकों ट्वीट किये गए, इनसे मदद की गुहार लगाईं गयी. मगर सब बेकार. मेरे कुछ मित्रों का तो ये मानना है की ये केवल वेरीफाईड ट्विटर हैंडल, पत्रकार और अन्य बड़े हैंडल की ही गुहार सुनते है, जिससे इनको प्रसिद्धि मिले. हो सकता है ये सहायता करने में असमर्थ हो, और अगर ये यही बात मुझे बोल देते तो मुझे कोई परेशानी नहीं होती मगर देख कर भी जवाब ना देना मुझे बहुत दुखी कर गया.

यहाँ तक की मैंने श्रीनिवास जी को व्हाट्सएप पर मेसेज भी किया, जो की उन्होंने देखा भी, परन्तु उसका जवाब देना भी उचित नहीं समझा.

श्रीनिवास जी अकेले नहीं है जिन्होंने जीवन की गुहार वाले मेसेज को नजरंदाज किया, ऐसे अनेक लोग है, इनमे से एक नाम है मध्य प्रदेश के स्वास्थ मंत्री प्रभु राम चौधरी, प्रदेश में सभी को चिकित्सा उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है, इनका कर्तव्य है, मगर ये तो जनता को मरता छोड़ ना जाने कौन की गुफा में छिप कर बैठे है.

ऐसे अनेक नेताओं ने किया, कुछ ने मेसेज देखे ही नहीं, कुछ ने देख कर जवाब नहीं दिया और कुछ के जवाब का कोई अर्थ ही नहीं निकला. कुछ उदहारण ये देखिये,

मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री जीतू पटवारी, कांटेक्ट नंबर लेने के पश्चात् कोई एक्शन नहीं.

इंदौर के सासंद और वरिष्ठ भाजपा नेता शंकर लालवानी, जी बोलने के पश्चात् कोई एक्शन नहीं, जबकि वो जनता के चुने हुए सांसद है, 5 लाख से अधिक वोटो से इंदौर की जनता ने उन्हें जीता कर संसद में पहुँचाया था, मगर उन्हें जनता के जीने मरने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.  

कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने स्पष्ट बता दिया की मुश्किल है ये काम और मुझे उनसे कोई शिकायत भी नहीं. मुझे अच्छे से पता है की ये काम बहुत ही मुश्किल था.

ऐसा नहीं की मुझे हर किसी से शिकायत ही है, कांग्रेस के पूर्व सांसद अभिजित मुखर्जी ने मुझे सहायता करने का प्रयत्न किया, मैंने उनसे ट्विटर पर डीएम पर संपर्क किया और उन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की.

राजस्थान से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद नीरज डांगी जी, दुसरा नाम है जिन्होंने मेरी सहायता करने का प्रयत्न किया.

ये ब्लाग एक और शख्सियत का उल्लेख किये बगैर पूर्ण हो ही नहीं सकता, मैंने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ जी को भी संपर्क किया, मैंने उन्हें एक whatsapp मेसेज किया और चंद घंटों में उनके सलाहकार आर के मृगलानी जी का फ़ोन आ गया. मृगलानी जी ने तब से ले कर लगातार हमें इंजेक्शन उपलब्ध कराने के लिए प्रयत्न किया, इंदौर कमिश्नर से चर्चा की, इंजेक्शन के स्टॉकिस्ट के नाम पत्र लिख कर दिया, यही नहीं, आज तक वो लगातार हमारे संपर्क में है, हाल चाल ले रहे है, और हर तरह से सहायता के लिए तत्पर रहे है. यहाँ मैं स्पष्ट कर दूं, मैं कांग्रेस का सक्रीय वालंटियर हूँ मगर मैं कमल नाथ जी के साथ नहीं रहा, और जैसा की सबको विदित है मध्य प्रदेश कांग्रेस में अनेक गुट है, मैं कही से भी कमल नाथ जी के गुट से नहीं जुडा हुआ हूँ, ना ही मेरा उनसे कोई व्यक्तिगत संपर्क है. मात्र इस मेसेज के बाद कमल नाथ जी के सहायक मृगलानी जी ने हमें सहायता करने का प्रयत्न किया 

हमारे लिए इंजेक्शन की पूर्ण व्यवस्था हो चुकी है, और बाबा महांकाल की कृपा से हमारा प्रियजन स्वस्थ हो रहा है, और इंजेक्शन की व्यवस्था भी केवल पारिवारिक संबंधों की वजह से हुई, हम सबके राजनैतिक संपर्क इंजेक्शन की व्यवस्था नहीं कर पाए,

इसीप्रकार मैंने कम से कम 50 ऐसे लोगो से संपर्क किया जिनसे सहायता की कोई भी अपेक्षा थी, मगर पूरी तरह निराश ही हुआ. इस ब्लॉग का उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं है, बल्कि ये दिखाना है की जिन प्रतिनिधियों को हम आप चुनते है, जिन राजनेताओं के लिए मेरे जैसे लोग दिन रात एक कर देते है, विरोधियों से व्यक्तिगत शत्रुता ले लेते है, मेरे जैसे लोग FIR तक झेलते है, वो आपके संकट में कितने साथ है? क्या हमारा आपका समय  इन लोगो के लिए वाकई होना चाहिए? सरकार के मुखिया प्रधान मंत्री एवं मुख्य मंत्री हमारे आपके संकट में कितना साथ खड़े है? सोचिये….

सब दरवाजो पर एक जीवन की भीख मांगने के बाद मैं लगभग इस बात से सहमत हूँ की  Today’s India is a hopeless nation with helpless Citizen

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