असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस की अंतिम सूची जारी कर दी गई है। इस लिस्ट में 3.11 करोड़ लोगों को जगह दी गई है, जबकि असम में रहने वाले 19.06 लाख लोग इस लिस्ट में शामिल नहीं किए गए हैं। इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने अपना दावा नहीं किया था। वैसे सूची में जगह न पाने वाले लोगों के पास इसके खिलाफ अपील करने के विकल्प होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तैयार किए गए नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस का एक ड्राफ्ट पिछले साल 31 जुलाई को रिलीज किया गया था। इस रजिस्टर से 40.7 लाख नाम बाहर किए गए थे। फिर 26 जून 2019 को जारी की गई अतिरिक्त सूची में यह आंकड़ा बढ़कर 41 लाख के करीब हो गया। राज्य के 3.29 करोड़ लोगों में से एनआरसी के ड्राफ्ट में 2.9 करोड़ लोगों को शामिल किया गया था।
आखिर क्या है एनआरसी ?
- देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है. असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है. यहां असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा.
- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है्. इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था. इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है.
- एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है. आपको बता दें कि वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया.
- इसके बाद भी भारत में घुसपैठ लगातार जारी रही. असम में वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और इससे राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा. 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने एक आंदोलन शुरू किया था. आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौत पर हस्ताक्षर किए गए थे.
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, उसकी देखरेख में 2015 से जनगणना का काम शुरू किया गया. इस साल जनवरी में असम के सिटीजन रजिस्टर में 9 करोड़ लोगों के नाम दर्ज किए गए थे जबकि 3.29 आवेदकों ने आवेदन किया था.
- असम समझौते के बाद असम गण परिषद के नेताओं ने राजनीतिक दल का गठन किया, जिसने राज्य में दो बार सरकार भी बनाई. वहीं 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1951 के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फैसला किया था. उन्होंने तय किया था कि असम में अवैध तरीके से भी दाखिल हो गए लोगों का नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप में जोड़ा जाएगा लेकिन इसके बाद यह विवाद बहुत बढ़ गया और मामला कोर्ट तक पहुंच गया.
एनआरसी से जुडी समस्याएं
विसंगतियों और गलत क्रियान्वयन की वजह से लाखों परिवारों के सामने अस्तित्व की चुनौती पैदा हो गयी है. इन परिवारों में कई ऐसे परिवार भी है जो किसी भी तरह से अवैध नागरिक नहीं साबित होते, जैसे की भारत के पांचवे राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद, या कारगिल युद्द के हीरो रहे सेना में अफसर मोहम्मद सनाउल्लाह. कही पर पूरे परिवार को भारतीय मान लिया मगर एक या दो सदस्यों को भारतीय नहीं माना, कही पर जन्म से भारतीय को भारतीय नहीं माना गया. ऐसे ही कुछ मामले जो NRC की विसंगतियों पर परकाश डालते है:
- सामाजिक संस्थाओं की रिपोर्टों के अनुसार 2016 से लेकर अब तक असम में 50 से ज़्यादा लोग नागरिकता से जुड़े तनावों के कारण ख़ुदकुशी कर चुके हैं.
- एनआरसी की अंतिम सूची से पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के चार सदस्य भी बाहर हो गए हैं। पूर्व राष्ट्रपति के भाई इकरामुद्दीन अहमद के पोते साजिद अली के अलावा उनके पिता गियाउद्दीन अहमद, मां अकिमा और भाई वाजिद का नाम एनआरसी की अंतिम सूची में नहीं है।
- भारतीय सेना के पूर्व आर्मी ऑफिसर मोहम्मद सनाउल्लाह का नाम फिर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की अंतिम सूची में भी नहीं आया है। हालांकि मोहम्मद सनाउल्लाह ने अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है। बता दे कि उनकी नागरिकता को लेकर गुवाहाटी उच्च न्यायालय में मामला लंबित पड़ा है।
- पैंतालीस साल के अब्दुल हलीम मज़ूमदार के परिवार के सभी सदस्यों के नाम सूचि में थे मगर उनकी पत्नी का नाम नहीं था, उन्होंने आपत्तियों के जवाब में सभी दस्तावेज जमा कराये, अगली सूची जब जारी हुई तो उके परिवार के 4 सदस्य सूचि में नदारत थे
अब्दुल हलीम मज़ूमदार और उनके परिवार का नाम एनआरसी की अंतिम लिस्ट में नहीं
- असम के दरांग ज़िले के खरपेटिया क़स्बे में रहने वाले उत्पल साह के परिवार में सब कुछ सामान्य था मगर जब 26 जून को आई एनआरसी की नई अडिशनल ड्राफ़्ट एक्सक्लूजन लिस्ट में उनकी माँ माया रानी साह के नाम के आगे ‘डी’ यानी संदिग्ध वोटर दर्ज आया, तब परिवार में सभी के होश उड़ गए. उत्पल और परिवार के बाक़ी सदस्यों के पास अब 55 वर्षीय माया रानी साह को भारतीय नागरिक साबित करने के लिए एक महीने से भी कम का वक़्त है.
अपनी माँ की नागरिकता से जुड़े सरकारी दस्तवेज़ दिखाते उत्पल साह
- असम के चिरांग जिले के बिश्नुपुर गांव की निवासी 59 वर्षीय मधुबाला मंडल के घर तीन साल पहले कोई अचानक एक शाम एनआरसी का नोटिस पेड़ में अटका के चला गया. उनके घर के सामने खले रहे एक बच्चे ने हाथ में काग़ज़ का टुकड़ा पकड़ा दिया. वो पढ़ी लिखी नहीं थी, अतः समझ में नहीं आया कि काग़ज़ में क्या लिखा है. फिर 2 महीने बाद एक दिन अचानक घर पर पुलिस आयी. उस सुबह बहुत ठंड थी और वे अपनी पोती के लिए आग जला रही थी. उन्होंने उन्हें उनसे कई बार कहा की उनका नाम मधुबाला मंडल है और मैं बांग्लादेशी नहीं हूं. लेकिन फिर भी उन्होंने उनका नाम ‘मधुबाला दास’ ही लिखा और उन्हें ले जाकर कोकराझार जेल में बंद कर दिया. ग़लत पहचान के कारण तीन साल डिटेंशन सेल की यातना झेलकर बाइज़्ज़त बाहर आयीं मधुबला मंडल अपनी रिहाई की सारी उम्मीद छोढ़ चुकी थीं.
रिहा होने पर पूरे तीन साल बाद मधुबाला की मुलाकात अपनी बेटी और नातिन से हो पाई
- बक्सा ज़िले के चुनबारी गांव में रहने वाले साठ वर्षीय अम्बर अली स्टोन क्वेरी में पत्थर तोड़ कर गुज़ारा करते थे. लेकिन एनआरसी लिस्ट में ख़ुद को डी-वोटर बताए जाने के बाद, 7 जुलाई को उन्होंने ट्रेन के सामने कूद कर जान दे दी. उनकी मौत के बाद से पत्नी हज़ेरा ख़ातून की ज़िंदगी के सारे पन्ने बिखर गए हैं.
पति अम्बर अली की तस्वीर के साथ हज़ेरा ख़ातून
ऐसे एक नहीं हजारो मामले है, हजारों परिवार बेहाल और परेशान है. हालाँकि सरकार ने एनारसी की विसंगतियों के खिलाफ अपील करने के लिए विदेशी ट्रिब्यूनल बनाया और और यदि ट्रिब्यूनल के फैसले से सहमत न हों तो भारत के सर्वोच्च न्यायलय जाने का मार्ग खुला है, परन्तु क्या बेबस, अनपढ़ ग्रामीण इस जटिल कानूनी प्रक्रिया को समझ पायेंगे? क्या इस कानूनी प्रक्रिया का पालन कर पायेंगे? और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न, भारत के नागरिक को अपनी नागरिकता साबित करने की आवश्यकता क्यों? आखिर सरकार सही तरीके से जांच कर आम नागरिकों को परेशानी से क्यों नहीं बचा रही है?
यदि सरकार ने एनारसी में फैली विसंगतियां दूर नहीं की तो इसका खामियाजा आने वाले कई दशकों कर उठाना पडेगा, सरकार की नाकामियों का असर हजारों परिवारों पर पड़ रहा है और पड़ता रहेगा
https://www.bbc.com/hindi/india-49202642
https://www.bbc.com/hindi/india-49185265
https://www.livehindustan.com/national/story-retired-army-officer-mohammad-sanaullah-not-named-in-final-assam-nrc-2719698.html
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मेरे एक परिचित ने तो कई बार अपने दस्तावेज उपलब्ध करवाए थे परन्तु उनका दावा कभी रिकार्ड में लिया ही नहीं गया, वे वरिष्ठ पत्रकार के साथ साथ अपने समाज के अध्यक्ष और बहुसंख्यक समाज से है, फिर भी
उनकी पीड़ा उन्होंने फेसबुक पर कई बार पोस्ट की, फिर उनके खुद के स्थानीय लोग उनको ट्रोल करने लगे तो उन्होंने फ़िलहाल चुप रहना ही उचित समझा था
क्या प्रक्रिया में वे लोग खुद भी शामिल थे जो NRC के लिए अयोग्य थे….
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