मोरार जी देसाई, भारत रत्न या निशान-ए-पाकिस्तान?

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By Kashif Khan

भारत में गठबंधन सरकार की शुरुआत 1977 में जनता पार्टी के गठन से हुई थी, तब अनेक दलों के साथ साथ भारतीय जनसंघ ने कांग्रेस (इंदिरा) खिलाफ गठबंधन कर मोरारजी देसाई के नेत्रित्व में सरकार बनाई। 1980 के चुनाव परिणामों में हुई भारी हार के बाद, जनता पार्टी और गठबंधन दोनों ख़त्म हुए, और भारतीय जनसंघ ने नए स्वरुप और नए नाम भारतीय जनता पार्टी के नाम से राजनीति में प्रवेश किया। कालांतर में भारतीय जनता पार्टी ने नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स (एनडीए) नामक गठबंधन की स्थापना की और आज देश में इसी एनडीए का शासन है। जनता पार्टी को एनडीए का पैत्रिक गठबंधन कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।

आपको यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि एनडीए के इसी पत्रिक संगठन के मुखिया मोरारजी देसाई पाकिस्तान में भारत के अनेकों रॉ एजेंट्स की मौत के जिम्मेदार तो है ही, साथ ही मोरारजी भाई पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनाने में सहायक भी रहे है।

कुछ आश्चर्यचकित कर देने वाले तथ्यों से पहले जान लेते है की क्या है ये रॉ?

रॉ आज़ाद हिंदुस्तान की पहली इंटेलिजेंस एजेंसी है जिसे विदेशों में भारत के लिए जासूसी और महत्वपूर्ण कार्यों को गुप्त रूप से अंजाम देने की जिम्मेदारी दी गयी थी। रॉ का पूरा नाम है रिसर्च एंड एनालिसिस विंग है, इसकी स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने 1965 के पाकिस्तान युद्ध के पश्चात् सन 1968 में की थी, जिसका उद्देश्य था अमेरिका की सीआईए की भाँती दुश्मन देशों में भारत के लिए खुफिया कार्यवाही करना। रॉ के पहले चीफ थे आर एन काओ। स्थापना के समय इसमें 250 एजेंट्स थे ,जो भारत के लिए अपनी जान पे खेलकर दुश्मनों से सबूत एकत्रित करते थे, इसका सालाना बजट 20 करोड़ रुपये था। जो कि 70 के दशक में बढ़कर 300 करोड़ पहुंच गया था एवं रॉ एजेंट की संख्या भी हज़ारो में पहुंच गई थी ।

अब बात करते है इसके उन कार्यों की जो देश हित मे रॉ  ने किए ,

बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करना: सन 1970 की शुरुआत में रॉ ने पाकिस्तान में बांग्लादेशी स्वतंत्रता अभियान पाकिस्तान के खिलाफ बहुत से साक्ष्य और जानकारी निकाल कर मुक्ति वाहिनी को दिए, जो बांग्लादेश के अलग होने में अति महत्वपूर्ण थे और अंततः बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करवा एक नया देश बनवाया।

स्माइलिंग बुद्धा: भारत ने 1974 में पोखरण में जो पहला परमाणु परिक्षण किया, उसकी जानकारियों को गुप्त रखने की जिम्मेदारी भी रॉ दी गयी थी और इस तरह भारत विश्व परमाणु शक्ति बन सका।

ऐसे अनेक कारनामे रॉ स्थापना से ही करता आ रहा था।

अब आते है सीधे विषय पर,

सन 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने,एवं अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री, एक भयानक घटना इतिहास के पन्नो में दर्ज हुई । 1971 की हार के बाद पाकिस्तान बौखलाया हुआ था, 1977 में  पाकिस्तान गुप्त रूप से कहूटा में परमाणु परिक्षण की तैयारी कर रहा था, जिसकी जानकारी एकत्रित करने के लिए 1977 के लोकसभा चुनाव पूर्व श्रीमती इंदिरा गांधी ने रॉ को यह काम सौंपा था। चुनाव में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री ,उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे ज़िया उल हक़, मोरारजी देसाई की जिया उल हक से मित्रता इतनी गहरी थी कि अक्सर फोन पर दोनों की वार्तालाप हुआ करती थी ।

देसाई ने अज्ञानता में समझा कि रॉ का इस्तेमाल इमरजेंसी के समय विपक्ष के खिलाफ करने के लिए बना था, और परिणाम स्वरूप सत्ता में आते ही सबसे पहले देसाई ने इसका बजट 30 परसेंट कम करने का फैसला किया, उसके बाद इसके चीफ आर एन काओ, जिनका लोहा पूरी दुनिया मान चुकी थी, को छुट्टी पर भेज दिया।

इतना ही नही ज़िया उल हक से अपनी फोन पर वार्तालाप में उन्हें पाकिस्तान में रह रहे सभी रॉ एजेंट्स का पता और ठिकाना भी बता दिया, यह कहते हुए की हम पड़ोसी है और कोई बात हमे आपस मे नही छुपाना चाहिए, साथ ही पाकिस्तान को यह भी बता दिया कि उसके द्वारा कहूटा में चल रहे नियुक्लिर प्लांट की पूरी जानकारी रॉ द्वारा भारत को मिल चुकी है ।

रॉ ने काफी मेहनत कर एक पाकिस्तानी जासूस को तैयार कर लिया जो भारत को कहूटा के ब्लू प्रिंट कुछ थोड़े पैसों के एवज में देने को तैयार हो गया था। रॉ के नियम अनुसार कोई भी विदेशी मुद्रा यदि किसी गुप्त मिशन हेतु देनी है तो भारत के प्राधानमंत्री की अनुमती के बिना नही दे सकते। जब सुनटूक पारसी प्रधानमंत्री देसाई के पास इन पैसों के लिए गए, देसाई ने यह बोलकर मना कर दिया कि यह पड़ोसी देश का आंतरिक मामला है, और हमे इसमें कोई दखल नही देना, सुनटूक ने देसाई को बार बार चेताया कि यदि पाकिस्तान परमाणु शक्ति बन गया वो हिंदुस्तान के लिए हमेशा खतरा बना रहेगा किंतु देसाई ने एक नही सुनी ।

जैसे ही जिया उल हक को रॉ की जानकारी देसाई द्वारा मिली जिया उल हक ने एक एक कर सभी एजेंट्स को पाकिस्तान में मरवा दिया, जिससे भारत को एक बड़ा नुकसान हुआ, और पाकिस्तान के परमाणु राज राज़ ही रह गए, इतना ही नहीं, तत्पश्चात इजराइल ने जब पाकिस्तान के कहूटा पर हमले के लिए देसाई से युद्ध विमान को भारत मे री-फियूलिंग करने की आज्ञा मांगी देसाई ने मना कर दिया।

देसाई की इस गलती का परिणाम भारत आज भी भुगत रहा है, कुछ लोगो का कहना था देसाई ने यह इंदिरा गांधी से बदला लेने के लिए उनके द्वारा बनाई एजेंसी को खत्म करने के लिए किया, तो कुछ का कहना था देसाई ऐसी विचारधारा रखते थे कि पड़ोसी देश से कोई बात नही छुपानी चाहिए। वजह जो भी रही हो किंतु यदि उस समय भारत यह गलती ना करता तो आज पाकिस्तान ना तो परमाणु शक्ति बनता नाही, हमारे अनेक रॉ एजेंट्स पाकिस्तान में मारे जाते।

शायद भारत के एजेंट की सूचना जिया उल हक़ को दे कर, पकिस्तान को परमाणु परिक्षण करने देने एवं भारत की सुरक्षा से खिलवाड़ के कारण ही पाकिस्तान ने मोरार जी देसाई को पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा गया।

और इसी जनता पार्टी की राजनैतिक विचारधारा से उपजे एनडीए और नरेंद्र मोदी भारत की सत्ता पर आसीन है, आखिर क्या कारण है जब भी भाजपा सता में आती है, तब तब भाजपा के हौसले बुलंद होते है, संसद, लालकिला, विधानसभा, कारगिल से ले कर पुलवामा तक सभी सरकारी चूक से घटित होते है? NDA-1 आया तो साथ लाया बराक मिसाइल घोटाला, ताबूत घोटाला जैसे अनेक रक्षा सौदों में घोटाले, NDA-2 आया तो राफेल।

क्या पाकिस्तान प्रेम में भारत को नुक्सान पहुंचाने की जनता पार्टी की सरकार की नीति क्या NDA-1 और NDA-2 में भी चली आ रही है?

 

 

Source:

https://www.dailyo.in/politics/morarji-desai-kargil-war-pervez-musharraf-pakistan-raw-kahuta-nuclear-warfare/story/1/3802.html

https://rightlog.in/2017/07/raw-mossad-pakistan-nuclear/

https://www.youtube.com/watch?v=PDmYPIq1dH0 

 

 

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